दिवाली के बाद दिल्ली में होगी कृत्रिम बारिश, सरकार ने पूरी की तैयारियां – पर्यावरण मंत्री “मनजिंदर सिंह सिरसा” का बयान
नई दिल्लीः राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अब कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) का सहारा लिया जाएगा। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सभी जरूरी मंजूरियां मिल चुकी हैं। सरकार अब किसी भी वक्त ट्रायल शुरू कर सकती है। सिरसा ने कहा कि मौसम विभाग की अनुमति मिलते ही अगले तीन घंटे के भीतर कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। इस परियोजना के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एयरक्राफ्ट फिलहाल मेरठ में तैयार खड़ा है। Source : नव भारत टाइम्स
पहला ट्रायल उत्तरी दिल्ली में होगा
मंत्री सिरसा ने बताया कि क्लाउड सीडिंग का पहला ट्रायल उत्तरी दिल्ली में किया जाएगा। उन्होंने कहा कि बीते चार दिनों से पायलट लगातार मेरठ से दिल्ली आकर ट्रायल की जगह पर अभ्यास कर रहे हैं। एयरक्राफ्ट को उस ऊंचाई तक उड़ाया गया है, जहां से बारिश कराने के लिए सीडिंग प्रक्रिया शुरू करनी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि सिविल एविएशन विभाग से भी सभी आवश्यक अनुमतियां मिल चुकी हैं और पूरी तैयारी पूरी हो चुकी है।
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दिवाली के बाद संभव है पहला ट्रायल
सिरसा के मुताबिक, पहला ट्रायल दिवाली के आसपास या उसके तुरंत बाद किया जा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब 23 विभागों का सहयोग लिया जा रहा है ताकि ट्रायल सुरक्षित और प्रभावी तरीके से किया जा सके।
कुल पांच ट्रायल की योजना
दिल्ली सरकार की योजना के तहत कुल पांच ट्रायल किए जाने हैं। पहले यह परीक्षण सितंबर में होना था, लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से टाल दिया गया। इसके बाद अक्टूबर की शुरुआत में तारीख तय हुई, मगर उस समय प्राकृतिक बारिश हो जाने के कारण फिर से स्थगित कर दिया गया। अब मौसम सामान्य होते ही ट्रायल को अंजाम दिया जाएगा।
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सरकार का कहना है कि इन ट्रायल्स के नतीजों और उनके प्रभाव का वैज्ञानिक मूल्यांकन करने के बाद, क्लाउड सीडिंग को बड़े पैमाने पर लागू करने का निर्णय लिया जाएगा।
मुख्य उद्देश्य: कृत्रिम बारिश के जरिए दिल्ली के प्रदूषण स्तर को कम करना और वायु गुणवत्ता में सुधार लाना।
🌧️ कृत्रिम वर्षा क्या है (What is Cloud Seeding)?
कृत्रिम वर्षा या क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) एक ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मानव हस्तक्षेप से बादलों में बारिश करवाने की कोशिश की जाती है।
सीधे शब्दों में कहें तो – जब प्राकृतिक रूप से बारिश नहीं होती, तब वैज्ञानिक तकनीक की मदद से बादलों को बरसने के लिए प्रेरित किया जाता है।

⚙️ कृत्रिम वर्षा कैसे की जाती है? (क्लाउड सीडिंग कैसे की जाती है)
बादलों की पहचान (Cloud Identification):
सबसे पहले मौसम वैज्ञानिक यह पता लगाते हैं कि किस क्षेत्र में ऐसे बादल मौजूद हैं जिनमें नमी (Moisture) पर्याप्त है लेकिन वे खुद से बरस नहीं पा रहे।
एयरक्राफ्ट या रॉकेट का इस्तेमाल:
इसके बाद विशेष विमान (Aircraft) या रॉकेट की मदद से उन बादलों में कुछ खास रसायन (Chemicals) छोड़े जाते हैं।
इनमें आमतौर पर सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide), सोडियम क्लोराइड (NaCl) या पोटैशियम आयोडाइड (KI) जैसे तत्व शामिल होते हैं।
बादलों में रासायनिक प्रक्रिया:
जब ये रसायन बादलों में पहुंचते हैं, तो वे जलवाष्प (Water Vapour) के छोटे-छोटे कणों को आपस में जोड़ने में मदद करते हैं।
इससे बादल के भीतर बूंदों का आकार बड़ा होता जाता है, और जब वे भारी हो जाते हैं — तो बारिश के रूप में नीचे गिरते हैं।
नियंत्रित दिशा में वर्षा:
वैज्ञानिक यह भी तय कर सकते हैं कि किस दिशा में बारिश करानी है, ताकि इसका फायदा प्रदूषण कम करने या सूखे इलाकों में पानी पहुंचाने में लिया जा सके।
🌍 कृत्रिम वर्षा का उद्देश्य
- प्रदूषण और धूल के स्तर को कम करना
- सूखे और जल संकट वाले क्षेत्रों में वर्षा कराना
- खेती और फसलों के लिए पानी उपलब्ध कराना
- बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता (Air Quality) सुधारना
⚠️ कुछ सीमाएँ और सावधानियाँ
- यह तकनीक हर मौसम या बादल की स्थिति में कारगर नहीं होती।
- इसके लिए सटीक मौसम पूर्वानुमान और सही रासायनिक मात्रा बेहद ज़रूरी है।
- इसके परिणाम हमेशा निश्चित नहीं होते — कभी बारिश होती है, कभी नहीं।
- पर्यावरणीय प्रभाव पर भी निरंतर शोध जारी है, ताकि यह पूरी तरह सुरक्षित बनाया जा सके।
🌧️ कृत्रिम वर्षा में उपयोग किए जाने वाले प्रमुख रसायन
कृत्रिम वर्षा करवाने के लिए बादलों में ऐसे रसायन छोड़े जाते हैं, जो बादलों के भीतर मौजूद जलवाष्प (Water Vapour) को एकत्र कर पानी की बूंदों में बदल देते हैं।
इन रसायनों को “सीडिंग एजेंट” (Seeding Agents) कहा जाता है।

🔹 1. सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide – AgI)
- यह सबसे आम और प्रभावी रसायन है जो विश्वभर में क्लाउड सीडिंग के लिए इस्तेमाल होता है।
- सिल्वर आयोडाइड के कणों की संरचना बर्फ के क्रिस्टल (Ice Crystals) जैसी होती है।
- जब इसे बादलों में छोड़ा जाता है, तो यह जलवाष्प को आकर्षित करके बर्फ के रूप में जमाता है।
- ये छोटे बर्फ के कण आपस में मिलकर बड़े होते जाते हैं और अंततः बारिश की बूंदों के रूप में गिरते हैं।
🔹 2. सोडियम क्लोराइड (Sodium Chloride – NaCl)
- यह साधारण नमक (Common Salt) होता है।
- गर्म और नमी वाले बादलों (Warm Clouds) में प्रयोग किया जाता है।
- यह जलवाष्प को आकर्षित कर बूंदों का आकार बड़ा करने में मदद करता है।
- यह समुद्री इलाकों या गर्म क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा के लिए उपयोगी होता है।
🔹 3. पोटैशियम आयोडाइड (Potassium Iodide – KI)
- यह रसायन भी बर्फ के क्रिस्टल जैसी संरचना बनाता है।
- ठंडे और ऊंचे बादलों में प्रयोग किया जाता है।
- सिल्वर आयोडाइड की तरह यह भी जलवाष्प को संघनित (Condense) करने में मदद करता है।
🔹 4. ड्राई आइस (Dry Ice – ठोस कार्बन डाइऑक्साइड – CO₂)
- ड्राई आइस बहुत ठंडी होती है (लगभग -78°C)।
- इसे बादलों में छोड़ने पर यह आसपास के तापमान को तेजी से घटा देती है,
जिससे जलवाष्प जमकर बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाती है और बारिश होती है। - यह तकनीक मुख्यतः छोटे और ठंडे बादलों में प्रयोग की जाती है।
⚙️ क्लाउड सीडिंग के प्रकार
- कोल्ड क्लाउड सीडिंग (Cold Cloud Seeding):
इसमें सिल्वर आयोडाइड या पोटैशियम आयोडाइड का प्रयोग किया जाता है। - वॉर्म क्लाउड सीडिंग (Warm Cloud Seeding):
इसमें सोडियम क्लोराइड (नमक) का उपयोग किया जाता है।
⚠️ सावधानी
- इन रसायनों की मात्रा बहुत सीमित रखी जाती है ताकि पर्यावरण पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
- सभी रसायनों को अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों और पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों के अनुसार ही प्रयोग किया जाता है।
✨ निष्कर्ष
कृत्रिम वर्षा एक आधुनिक तकनीक है, जो तब काम आती है जब प्राकृतिक बारिश संभव नहीं होती। दिल्ली जैसे प्रदूषण-प्रभावित शहरों में यह प्रयोग एक बड़ा कदम माना जा रहा है, क्योंकि इससे वायु गुणवत्ता में सुधार और धूल प्रदूषण में कमी लाई जा सकती है। कृत्रिम वर्षा में मुख्य रूप से सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड, पोटैशियम आयोडाइड, और कभी-कभी ड्राई आइस (CO₂) का प्रयोग किया जाता है।
इन रसायनों की मदद से बादलों में जलवाष्प का संघनन बढ़ाकर बारिश कराई जाती है।



